- श्री समीर जोशी, एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट, मार्केटिंग (बी2बी), गोदरेज इंटरियो
स्वास्थ्यकर्मी जिस तरह से हर दिन राष्ट्र सेवा के लिए कुर्बानी देते हैं, उसे जानना-समझना किसी दर्द से गुजरने से कम नहीं होता है. हाल ही में, मीडिया में एक खबर आई कि 31 वर्षीय एक पीजीआई नर्सिंग स्वास्थयकर्मी ने 16 दिन पहले अपना घर छोड़ दिया था और तब से वह परिवार से दूर रहते हुए, खुद को क्वारंटाइन में रखे हुए हैं.
घर से निकलने से पहले वह अपनी बेटी के शब्दों को याद करते हैं: "जब तुम आना तो मेरे लिए चॉकलेट लेते आना.” ये पीजीआई नर्सिंग स्वास्थयकर्मी इतने दिनों तक कभी भी अपनी बेटी से दूर नहीं रहे हैं. इस स्थिति में, अपनी बेटी और परिवार से जुड़े रहने का उनके पास एकमात्र तरीका यही है कि वे अन्य रोगियों के मन में आशा का संचार करने के लिए अपने परिवार के बारे में बात करते रहते हैं.
दूसरी तरफ, एक छोटी लड़की का वीडियो वायरल है. इसमें वो नर्सिंग स्टाफ की तरफ किस (चुंबन) उछल रही हैं, क्योंकि उनलोगों ने उसकी पूरे समर्पण और सेवाभाव से ख्याल रखा था. ये वीडियों दिल को छू जाता है. स्वास्थयकर्मियों का ये व्यवहार किसी महामारी की वजह नहीं है. अधिकांश लोग मानते हैं कि स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले लोगों के प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए क्योंकि आमतौर पर वे हमेशा ही लोगों का बेहतर ख्याल हैं. नर्सिंग के काम में कई चुनौतियां हैं. इनमें पेशेवर चुनौतियां भी है और घरेलू मोर्चे पर भी चुनौतियां होती है.
लोग अक्सर ये बात भूल जाते हैं कि इन देखभाल करने वालें लोगों को भी सहानुभूति, प्यार की आवश्यकता होती है और अन्य श्रमिकों की तरह उन्हें भी काम करने के लिए एक सुरक्षित और खुशनुमा माहौल चाहिए. चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, वे राष्ट्र को विजयी बनाने में मदद करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं.
देखभाल के काम में भावनात्मक और शारीरिक तनाव बहुत अधिक होता है. लेकिन, इस तथ्य पर शाय्द ही कोई ध्यान देता हो. नर्सिंग और देखभाल करने का मतलब केवल एक मरीज की शारीरिक समस्याओं की देखभाल करना ही नहीं है, बल्कि इसका मतलब भावनात्मक रूप से मरीज की मदद करना भी है. इससे नर्सों के बीच भावनात्मक संकट पैदा होता है. यही आगे चल कर उन्हें आंतरिक रूप से प्रभावित करने वाले बहुत सारे शारीरिक तनाव की ओर अग्रसर करता है.
जैसे-जैसे कोरोना का प्रकोप वैश्विक स्तर पर फैलता जा रहा है, हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स और विशेषज्ञों की चिंता बढ़ती जा रही है. वे इस बात से चिंतित हैं कि ये वायरस, नर्सों और डॉक्टरों पर कैसे प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.
ऐसे में, बदलती जरूरत को पूरा करने के लिए सकारात्मक रूप से प्रेरित और अच्छी तरह से तैयार कार्यबल की आवश्यकता है. हम नर्सों की आवश्यकता को पूरा करके और उनकी चुनौतियों का ख्याल रखते हुए इस लक्ष्य को पा सकते हैं. इससे नर्सिंग स्टाफ को सशक्त और प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे कि वे बिना किसी बाधा के लोगों को अपना उत्कृष्ट सेवा दे सकें.
भारत में 600,000 डॉक्टरों की कमी है. प्रत्येक 10,189 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है (विश्व स्वास्थ्य संगठन 1: 1,000 के अनुपात की सिफारिश करता है). साथ ही देश में, दो मिलियन नर्सों की कमी है. आज देश में नर्स-रोगी अनुपात 1: 483 है.
कोविड-19 मामलों की बढती संख्या, थकाऊ शिफ्ट की वजह से नर्सिंग स्टाफ के पास आराम करने का भी समय नहीं है. भारत की कार्य संस्कृति बेहद विविध है. पूरे देश में बदलती हुई गंभीर स्थिति के साथ ही भारतीय स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली भी परिवर्तनकारी बदलाव के दौर से गुजर रही है. जिम्मेदारियों के साथ तालमेल बिठाने के क्रम में अक्सर नर्सिंग स्टाफ उन चुनौतियों को नजरअन्दाज करते हैं, जिनका वे सामना कर रहे हैं. उन्हें ये एहसास नहीं होता कि खुद उनका स्वास्थ्य बेहतर होना कितना आवश्यक है.
वायरस के वैश्विक प्रसार के दौरान, इस तरह की अभूतपूर्व स्थिति, कठिन कार्यक्षेत्र और समय में काम काम बहुत ही दर्दनाक साबित होता है. इस आपदा से कोई भी देश या समाज अछूता नहीं है. जिस तेजी से ये महामारी फैल रही है, सरकार, संस्थान, व्यवसाय और बाजार इस वास्तविकता का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है. चारों तरफ भय का माहौल है. इस वैश्विक महामारी के शुरु होने से पहले से ही, हर दिन नर्सिंग स्टाफ को असंख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
चुनौतियां:
बीमारियों और वायरस से राष्ट्र की रक्षा के क्रम में असल जिन्दगी के इन नायकों को बड़ी चुनौतियों का सामना करना होता है. नर्सों के कार्य में भारी ट्रॉलियों को धकेलना, रोगी के बेड को धकेलना, रोगी को उठने बैठने के लिए उठाना, रोगियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना, रोगी की देखभाल करते समय झुकना, बिस्तर बनाना और खिलाना या पानी-खून चढाना, रोगी को बिस्तर से व्हीलचेयर तक ले जाना या व्हीलचेयर से बिस्तर तक लाना, उनकी साफ-सफाई करना, आदि जैसे काम शामिल हैं.
ये सभी कार्य थका देने वाले होते हैं और इसमें नर्सों को बहुत अधिक शारीरिक मेहनत करनी पडती है.
तनाव और समय के खिलाफ लडाई
लंबे समय तक काम करने के शिफ्ट, ओवरटाइम और काम की अधिकता, उनके शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति को प्रभावित करते हैं. हमारे शुरुआती अध्ययन के अनुसार, 88% नर्सें दिन में 8-10 घंटे काम करती हैं और महीने में कम से कम दो बार या तीन बार ओवरटाइम करती हैं (35% महीने में तीन बार से ज्यादा समय तक काम करती हैं).
1. कमजोर रोगी:नर्स अनुपात
गोदरेज इंटरियो के शोध अध्ययन “एलीवेटिंग एक्सपिरिएंसेज, एनरिचिंग लाइव्स” से पता चलता है कि चिकित्सा और सर्जरी (विशेष रूप से सामान्य वार्ड) जैसे विभागों में 53% नर्सों के लिए स्टाफ-पेशेंट रेशियो 1:6 का है.
इंडियन नर्सिंग काउंसिल (आईएनसी) मानदंडों के अनुसार, मेडिकल कॉलेजों के सामान्य वार्डों में नर्स-मरीज का अनुपात 1: 3 और जिला अस्पतालों के लिए 1: 5, ओपीडी के हरेक क्लिनिक के लिए एक और आईसीयू या अन्य क्रिटिकल एरिया के लिए 1: 1 का होना चाहिए.
2. अनियमित और अनियंत्रित छुट्टी (ब्रेक)
3.घंटे लागातार काम के बाद 28% नर्सिंग स्टाफ ब्रेक लेते हैं, जबकि 26% किसी कार्यदिवस (8 या अधिक घंटे) में कोई ब्रेक नहीं लेते हैं.
4. शारीरिक मुद्रा से होने वाला तनाव
एक पेशे के रूप में नर्सों को खडे हो कर अपनी सेवा देने की जरूरत होती है. हालांकि, 74% नर्से दिन में 4-6 घंटे से अधिक समय तक खड़ी रहती हैं. इससे उनके पैरों और कमर में समस्या आ सकती है.
5. अतिरिक्त मैकेनिकल सहायता
एक मरीज को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना, नर्सिंग कर्मचारियों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी में से एक है. हमने यह समझने की कोशिश की कि देखभाल करने वाले स्टाफ इसके लिए किस तकनीक उपयोग कर रहे हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या वे तकनीक मरीज के साथ-साथ कर्मचारियों के लिए भी सुरक्षित हैं.
हमने पाया कि कुछ बड़े निजी अस्पतालों में, जहां उनके पास मैकेनिकल लिफ्टर है, स्टाफ को या तो इसके उपयोग के लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया था या वे उस प्रक्रिया का उपयोग करने में संकोच कर रहे थे. इससे भी नर्सों के स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड सकता है. अध्ययन के दौरान नर्सों से बातचीत से निम्नलिखित मुद्दें सामने आए:
• 44% नर्सें गैट बेल्ट की मदद से मरीज को अकेले उठाती हैं
• 58% नर्सें रोगी को गैट बेल्ट की मदद के बिना अकेले उठाती हैं
• 43% नर्सें रोगी को अकेले बिस्तर पर लिटाती हैं
• 57% नर्सें मरीज को सिर्फ एक व्यक्ति की मदद से एक बिस्तर से दूसरे बिस्तर पर शिफ्ट करती हैं
• 74% नर्सों ने बताया कि वे एक मरीज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय मैकेनिकल लिफ्टर का उपयोग नहीं करती हैं
अस्पताल के काम के कई पहलू हैं. मसलन, इसके भौतिक तत्व, जैसे इसका कार्यक्षेत्र, कार्यस्थान और भौतिक वातावरण. इसके अलावा, इसके मनोसामाजिक तत्व, जैसे, नौकरी से संतुष्टि, कार्यभार, स्वायत्तता और भागीदारी. ये सभी तत्व नर्सों के तनाव और दक्षता को प्रभावित करते हैं.
अस्पताल का डिजाइन और बुनियादी ढांचा नर्सों की कार्य संतुष्टि और रोगियों के आराम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. डिजाइनरों को तकनीकी रूप से उन्नत सुविधा, श्रम दक्षता के हिसाब से फिट और एक ऐसा हेल्थकेयर सेटअप जो रोगी और उनके देखभाल करने वालों की सुविधा पर केंद्रित हो, पर ध्यान देना चाहिए. इन अस्पतालों को नौकरी के घंटे और नर्सों के कार्यों के अनुसार डिज़ाइन किए जाने चाहिए. डिजाइन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नर्सिंग स्टाफ के पास आराम करने, खुद को काम के लिए फिर से तैयार करने के लिए जगह हो. अस्पताल के बुनियादी ढांचे को डिजाइन करते समय नर्सिंग स्टाफ के तनाव और थकान को कम करने और एर्गोनोमिक (कर्मचारी कार्य परिस्थिति) रूप से फिट स्पेस के महत्व पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
इन स्थानों को डिज़ाइन करते समय फर्नीचर के समायोजन, चिकित्सा उपकरणों की बाधा रहित प्लेसमेंट और कमरे में प्रकाश, अंदर और आसपास वेंटिलेशन और साउंड लेवल को बेहतर बनाए रखने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं. ये सभी काम कर्मचारी दक्षता और रोगी की रिकवरी के लिए महत्वपूर्ण हैं. अस्पतालों में बिताए लंबे घंटों को ध्यान में रखते हुए, कार्यक्षेत्रों को बेहतर तरीके से एर्गोनॉमिक्स, उत्पादकता, दक्षता, पहुंच और सुविधा का समर्थन करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए.
गोदरेज इंटरियो का रिसर्च पेपर “एलीवेटिंग एक्सपीरियंस, एनरिचिंग लाइव्स” से पता चलता है कि 90% से अधिक नर्सों को मस्कुलोस्केलेटल विकार (मस्लस, बोन आदि में दर्द) की शिकायत हैं. एक पेशे के रूप में नर्सों को काफी देर तक खडे हो कर काम करना होता है. लंबे समय तक काम करने, ओवरटाइम और काम की अधिकता, विशेष रूप से बीमारियों के तेजी से फैलने के समय में, से उनके शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति पर नकारात्मक असर होता है.
नर्सों के कार्यक्षेत्र के डिजाइन में नर्सों की भागीदारी आवश्यक है. ये काम बेहतर और उच्च गुणवता के कार्य प्रदर्शन के लिए प्रेरक के रूप में कार्य कर सकते हैं. किसी भी महत्वपूर्ण बदलाव के लिए, एक महत्वपूर्ण कार्य डिजाइन मानदंड के अलावा भागीदारी भी बहुत जरूरी है.